DNC NEWS BIJAPUR

*एक तरफ खाई तो दूसरी तरफ *कुआँ* 

 *आखिरकार करें तो करें क्या ‘**

बीजापुर जिले के कुटरू तहसीलदार श्री विरेन्द्र श्रीवास्तव ने जब से अपने उच्च अधिकारियों के निर्देशन में हाई कोर्ट के आदेश के परिपालन में सोमा चिड़ेम एवं बलदेव चिड़ेम का अतिक्रमण हटाया ।लगातार सुर्खियों में बने रहे ।

मामला तूल तब पकड़ा जब क्षेत्रिय विधायक द्वारा गरिब तपके का आदिवासी सोमा चिड़ेम 2डिसमिल के लिए संघर्ष करता रहा और मकान तोड़ दिया गया कहकर प्रेस कॉन्फ्रेंस किया गया ।

वही आदिवासी तपके का मामला समझ समाज प्रमुखों द्वारा भी बैठक लिया गया ।

और रेली धरना प्रदर्शन इस प्रकार की बातों का चर्चा होने लगा ।

मामले में मोड़ तब आया जब1200 की राशी का जिक्र वन अधिकार पट्टा नही मिलने पर ग्रामिणों ने उठाया ।

वहीं इस बात पर तहसीलदार महोदय ने कहा सरकार में रहकर विधायक जी चाहते तो जैसे अन्य आदिवासियों को वन अधिकार भुमि दीया गया दे सकते थे परंतु उन्होंने संज्ञान नही लिया ये उनकी जवाबदारी है मेरी नहीं मैंने किसी से एक रू भी नहीं लिया ये बेबुनियाद और गलत मनगढ़ंत आरोप है। ज जो झूठ है।

मामले को आगे बढ़ता देख सत्ता पक्ष भी कहाँ पिछे रहने वाले थे कब । जब कि विधायक द्वारा कहा गया कि जमीन संपत्ती बनाने में भाजपाईयो ने भी कोई कमी नहीं छोड़ी ‘ ।

भाजपा ने अपने प्रेस कॉन्फ्रेंस में कहा तहसीलदार पर जिस प्रकार से दोष रोपण किया जा रहा है। गलत है महोदय ने हाई कोर्ट के आदेश के परिपालन में यह कार्यवाही किया है।

परंतु किसी ने भी दयानंद चौधरी के घर जाकर यह नहीं पूछा की चौधरी जी आपको क्या परेशानी है। वास्तव में उनके आने जाने का रास्ता है। या नहीं है।

या इस मसले का क्या रास्ता निकल सकता था ।

 

अब प्रश्न खड़ा होता है।

(१) कोई व्यक्ति जबकि स्थिति में जब समाज प्रमुख उसके साथ न हो न्याय पालिका जा सकता है या नहीं ?

(२) यदि न्याय मिलता है तो उस पर परिपालन होना चाहिए या नहीं ?

(३) भेद भाव कि राजनिती से आपस में भाई चारा स्थापित हो सकता है क्या?

(४) दयानंद चौधरी के खिलाफ सब एक जुट हो गये क्या यह न्याय है?

(५) या तहसीलदार को विवादित तहसीलदार कहना ये न्याय है।

अंतिम टीप्पणी*** सत्ता पक्ष में बैठे माननिय मोदी जी कहते हैं

नारा देते हैं।

सबका साथ सबका विकास

विपक्ष में बैठे राहुल जी चला रहे हैं। भारत जोड़ो यात्रा ।

तीसरी बात ये समाज के लोग बुद्धिजीवी वर्ग या कहे तो ग्राम पंचायत या पंच सरपंच

उन्हीं के गाँव में रहने वाले के विवाद पर संज्ञान कोर्ट के फैसले के बाद ही क्यों लेते हैं, दयानंद चौधरी के हाई कोर्ट तक जाकर फैसला लाने तक मुक दर्शक क्यों बने रहे । पूछता है भारत ।

एक बार गंभिरता से पढ़कर विचार करना

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ब्यूरो चीफ** सिरोज विश्वकर्मा

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